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आधुनिक भारत के जनक राम मोहन रॉय | Raja Ram Mohan Roy

राजा राम मोहन रॉय – Raja Ram Mohan Roy
आधुनिक भारत के रचयिता के नाम से जाने जाते है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जो भारत का समाजवादी आंदोलन भी था। सती की प्रथा को बंद कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। राजा राममोहन रॉय एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। उन्होंने इंग्लिश, विज्ञान, पश्चिमी औषधि और तंत्रज्ञान की शिक्षा प्राप्त की थी। मुग़ल शासको ने उन्हें “राजा” की उपमा दी थी।

आधुनिक भारत के जनक राजा राम मोहन रॉय – Raja Ram Mohan Roy

राजा राममोहन रॉय एक महान इतिहासिक विद्वान है, जिन्होंने भारत को आधुनिक भारत में बदलने के लिए काफी संघर्ष किये थे और सदियो से चली आ रही हिन्दू कुप्रथाओ का विनाश किया था। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने बहोत से सामाजिक काम किये और देश में महिलाओ की स्थिति को मजबुत बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान भी रहा है। रॉय ने सती प्रथा का खुलकर विरोध किया था। वे एक महान विद्वान थे जिन्होंने काफी किताबो का भाषा रूपांतर किया था।

1828 में राजा राममोहन रॉय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।

उन्होंने राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्रो में भी बहोत से अमूल्य कार्य किये है। राजा राममोहन रॉय विशेष रूप से हिन्दू अंतिमसंस्कार में सती प्रथा के विरोध के लिए जाने जाते है, उस समय बंगाल में पति की मृत्यु के बाद पत्नी को सती करार दिया जाता था। रॉय ने इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का भी विरोध किया और भारत में इंग्लिश शिक्षा की बजाये उन्होंने संस्कृत और पर्शियन भाषा में पढाने पर ज्यादा जोर दिया। 1816 में उन्होंने ही अंग्रेजी में ‘हिन्दुइस्म’ शब्द की खोज की थी। इतिहास में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण महापुरुषो में से एक माना जाता है। वे हमेशा भारत और हिंदुत्व को बचाने के लिए ब्रिटिश और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लढते रहे। ब्रिटिश सरकार ने तो उन्हें “भारतीय नवजागरण के जनक” की पदवी दे रखी थी। ब्रिटिश सरकार ने उनकी याद में एक स्ट्रीट का नाम बदलकर “राजा राममोहन वे” भी रखा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा – Raja Ram Mohan Roy Education
राम मोहन रॉय का जन्म 1772 में ब्राह्मण समाज में बंगाल राज्य के हूघली जिले के अरंभग तहसील के राधानगर में हुआ था। उनके परिवार में हमें जातिगत विभिन्नता दिखाई देती है, उनके पिता रमाकांत वैष्णव धर्म के थे जबकि उनकी माता तारिनिदेवी शिवैत परिवार से थी।
राम मोहन रॉय ने तीन शादियाँ की थी, उनकी पहली पत्नी की मृत्यु बालपन में ही हो गयी थी. उनकी दूसरी पत्नी से उन्हें दो बेटे भी हुए, 1800 में राधाप्रसाद और 1812 में रामप्रसाद। उनकी दूसरी पत्नी की मृत्यु 1824 में हुई थी। उनकी तीसरी पत्नी भी ज्यादा समय तक जीवित नही रह पायी थी। राम मोहन रॉय की प्रारंभिक शिक्षा काफी उतार-चढाव से भरी रही।
इतिहासकारो के अनुसार राम मोहन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला से ही ग्रहण की और वहाँ उन्होंने बंगाली और संस्कृत और पर्शियन भाषा का भी ज्ञान लिया। बाद में मदरसा में उन्होंने पर्शियन और अरेबिक भाषा का अभ्यास किया। बाद में हिन्दू साहित्य और संस्कृत का अभ्यास करने वे बनारस गए। वहाँ उन्होंने वेद और उपनिषद का भी अभ्यास किया। कहा जाता है की 9 साल की आयु में उन्हें पटना भेजा गया था और 2 साल बाद उन्हें बनारस भेजा गया था।
इंग्लैंड का जीवन –
उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह घोषित कर दिया था की यदि ब्रिटिश पार्लिमेंट ने रिफार्म बिल पास नही किया तो वे ब्रिटिश साम्राज्य से निकल जायेंगे।
1830 में राम मोहन रॉय ने मुग़ल साम्राज्य के एम्बेसडर के रूप में यूनाइटेड किंगडम की यात्रा की थी, वे यह देखना चाहते थे की लार्ड बेंटिक ने अपने साम्राज्य में सती प्रथा बंद की या नही। उन्होंने उसी समय फ्रांस की यात्रा भी की थी।
वे संसार के महत्त्वपूर्ण धर्मग्रंथों का मूल रूप में अध्ययन करने में समर्थ थे। इस कारण वे संसार के सब महत्त्वपूर्ण धर्मों की तुलना करने में सफल हो गये। विश्वधर्म की उनकी धारणा किन्हीं संश्लिष्ट सिद्धांतों पर आधारित नहीं थी, बल्कि विभिन्न धर्मों के गम्भीर ज्ञान पर ही आधारित थी। उन्होंने वेदों और उपनिषदो का बंगला अनुवाद भी किया। वेदान्त के ऊपर अंग्रेज़ी में लिखकर उन्होंने यूरोप तथा अमेरिका में भी बहुत ख्याति अर्जित की।
सती प्रथा का विरोध – Raja Ram Mohan Roy Against Sati Pratha :
राजा राम मोहन राय – Raja Ram Mohan Roy के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी – सती प्रथा को बंद कराना। उन्होंने ही अपने कठिन प्रयासों से सरकार द्वारा इस कुप्रथा को ग़ैर-क़ानूनी दंण्डनीय घोषित करवाया। उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन समाचार पत्रों तथा मंच दोनों माध्यमों से चला। इसका विरोध इतना अधिक था कि एक समय पर तो उनका जीवन ही खतरे में था। वे अपने शत्रुओं के हमले से कभी नहीं घबराये। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंण्टिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सके। जब कट्टर लोगों ने इंग्लैंड में ‘प्रिवी कॉउन्सिल’ में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। उन्हें प्रसन्नता हुई जब ‘प्रिवी कॉउन्सिल’ ने ‘सती प्रथा’ के समर्थकों के प्रार्थना पत्र को अस्वीकृत कर दिया। सती प्रथा के मिटने से राजा राममोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सर्वप्रथम कतार में आ गये।
27 सितम्बर, 1833 में इंग्लैंड में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई थी।
राम मोहन रॉय ने आधुनिक भारत के इतिहास में प्रभावशाली काम किये है। वेदांत स्कूल ऑफ़ फिलोसोफी में उन्होंने उपनिषद का अभ्यास किया था। उन्होंने वैदिक साहित्यों को इंग्लिश में रूपांतर भी किया था और साथ ही ब्रह्म समाज की स्थापना भी उन्होंने की थी। भारतीय आधुनिक समाज के निर्माण में ब्रह्म समाज की मुख्य भूमिका रही है। सती प्रथा के खिलाफ उन्होंने सफल मोर्चा भी निकाला था। वे भारत से पश्चिमी संस्कृति को निकालकर भारतीय संस्कृति को विकसित करना चाहते थे। आधुनिक समाज के निर्माण के लिए उन्होंने कई स्कूलो की स्थापना की थी, ताकि भारत में ज्यादा से ज्यादा लोग शिक्षित हो सके। वे आधुनिक सक्रीय महामानव थे और नये भारत के ऐसे महान् व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूर्व एवं पश्चिम की विचारधारा का समन्वय कर सौ वर्षों से सोये हुए भारत को जागृत किया। वे इस समाज एवं शताब्दी के ऐसे निर्माता थे, जिन्होंने उन सब बाधाओं को दूर किया, जो हमारी प्रगति के मार्ग में बाधक थीं। वे मानवतावाद के सच्चे पुजारी थे। उन्हें पुनर्जागरण व सुधारवाद का प्रथम जनक कहा जाता है।
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